28 July, 2015

स्व. डॉ. कलाम को समर्पित

सूरज उगता सूरज ढलता , दिन है चढ़ता दिन है ढलता,
ये सब है निरंतर चलता !
पर एक सूरज ऐसा था, जो उज्जवल था - बस उज्जवल था,
कभी ना थकता, कभी ना ढलता, दुनिया को प्रकाशित करता !
वो लिखता था, वो कहता था, और सबको ये बतलाता था,
ना थकना है, ना रुकना है, वो सबको ये समझाता था !
वो सबका आदरणीय था, सबकी आँखों का तारा था,
ऐसा पावन मानुष था की देवों को भी प्यारा था !
आज मगर उस सूरज ने इस धरती से प्रश्थान किया,
मायूस था, पर क्या करता, था देवों ने आह्वान किया !
दुःख की नहीं है बात, है ये घडी - जश्न्न मानाने की,
एक अलोकिक आत्मा के ईश्वर में मिल जाने की !
नहीं रहा तू बीच हमारे, पर यादों में अमर रहेगा,
सूरज चाँद रहेगा जब तक, तब तक तेरा नाम रहेगा !

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